सुर्खरू हैं जज़्बात मेरे शूरूआती दौर से romantic shayari,
सुर्खरू हैं जज़्बात मेरे शूरूआती दौर से ,
इज़हार ए बेमुरव्वत में बड़ा वक़्त लग गया ।
शुरूआती दौर के ये जुगनू हैं जगमगाने दो ,
जश्न ए महफ़िल की रानाईयों को फ़लक़ तक तो सँवर जाने दो ।
दो बूँद कटोरे में पानी की आस है ,
घर में फुदकती गौरैया को दाने पानी की तलाश है ।
शुरुआत हो ग़र अंजाम ए इश्क़ की परवाह किये बगैर ,
मंज़िल भी मिल ही जाएगी मुफ़लिश को मुब्तला किये बग़ैर ।
शुरुआत से दम भर के निकला है जो
शम ए हरम की ओर , रोशन खुद ब खुद हो जाती है राहें बिछाये भोर ।
आगाज़ ए इश्क़ है लब पर तबस्सुम निखरे हैं ,
दिल में कोई मलाल नहीं गोया फिर भी शुरुआत से वो बिफ़रे हैं ।
शुरुआत के कँवल हैं मद्धम से हैं जज़्बात ,
खुल के रंगत निखर के आएगी पहली किरन के बाद ।
अब्र ए आफ़ताब से टपकती बूँदें ,
ज़र्द सतहों पर कोई मुफ़लिश दिल में प्यास लेके खड़ा है ।
वस्ल की रात कटती नहीं सरगोशी से ,
ये तू जाने या अहल ए दिल जाने ।
शुरूआती दौर में कम बेसी जाएज़ थी ,
बदलते वक़्त की रफ़्तार के आगे सुख़नवर और भी जैला के हों ।
शब् ए ग़म ने मारा हो जिसे ,
मौत क्या उसके साथ कारनामे करे ।
कितनो को मौजें नशीब होती हैं कितने साहिल क़रीब होते हैं ,
कितने ग़ुमनाम लुटे लहरों में ,
यही अंजाम ए इश्क़ के सफ़ीने होते हैं ।
मौत तो मैकशी में होती है ,
पीने वालों ने इश्क़ से तौबा कर ली ।
मौत की अज़ीज़ियत कमाल होती है ,
पीने वालों को सबसे पहले पनाह देती है ।
कितने ख़ुशक़िश्मत समंदर वो होते होंगे ,
जिनकी मौजों में साहिल नहीं होते होंगे ।
मौत तो चट्टान के मानिंद मुक़म्मल थी खड़ी ,
ज़िन्दगी ही लुक छिप के दगा देती हैं ।
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