हम तो कारोबार ए इश्क़ में बर्बाद हुए हैं ग़ालिब alone shayari ,
हम तो कारोबार ए इश्क़ में बर्बाद हुए हैं ग़ालिब ,
वो मालामाल होकर भी जाने किस साज़ ओ सामान की परवाह किया करते हैं ।
ख्वाब उनके सलीके से पेश आते नहीं ,
एक बार नज़रों में बस जाएँ तो फिर सुबह तलक जाते नहीं ।
शहर भर में पहले से क्या क़त्लखाने कम थे ,
जो लोग चले आये मरने के लिए सनमखाने में ।
रहमत बरस रही है ज़र्रे ज़र्रे में,
किस आब ओ अब्र में छुपा बैठा है खुदा मैं सारा आस्मां तलाश करता हूँ ।
बुत ओ मुजस्सिमों से बाद ए नाउम्मीदी के मोहब्बतों की पैरवी करने ,
कोई आसमानी मसीहा ज़मीन पर उतरे तो सही ।
खुश्क मौसम में पत्ते गीले गीले हैं ,
बैठकर शाख़ पर दरख्तों के रूह कोई रोयी है क्या ।
खुद के बूते में खड़े कभी ताज ए मुजस्सिम भी करों ,
यूँ हर बात पर नुख्ताचीनी भी सरीसर नाजायज़ है ।
हर दौर ए सियासत में बस फ़र्क इतना है ,
कोई सियार कोई लोमड़ी कोई भेड़िये के जैसा है ।
यूँ ही जब तेरी याद आती है ,
तुझको भला बुरा बोलकर दिल को तसल्ली दे लेता हूँ ।
रोने से क्या होगा फायदा सोचता हूँ ,
फिर तकिये मुँह छुपा के सुबक लेता हूँ ।
कभी तेरी बातों से गुल खिलते थे रातों को ,
अब तेरी यादों से रातों को गुलज़ार करता हूँ ।
मैं तुझे याद करता हूँ अब भी ,
तू मुझको भूल जा शायद ।
वो चादर वो बिछौने वो परदे वो दरीचे ,
अभी भी आती है खुशबू उनसे जो कभी तूने छुए होंगे ।
बगीचे में उगे पौध की टहनियों फूलों से आती है तेरी ख़ुश्बू ,
भिगोने में तेरी यादों में बहे अश्क़ों को निचोकर बंज़र ज़मीनो को सींचे होंगे ।
दिल धड़कता है मेरा जब भी नाम तेरा सुनता हूँ ,
कौन कहता है मुर्दा घरों में आहटें महसूस नहीं होती है ।
रोती है रात तनहा जब चाँद होता है अकेला ,
भीड़ भाड़ वाले इलाकों में ये घुटन महसूस नहीं होती है ।
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