ज़िद थी रवायतों की dard shayari ,
ज़िद थी रवायतों की ,
गोया समंदर की लहरें कब साहिल पर ठहरी हैं ।
कितना झूठ है सच्चाई में ,
आज तू ग़ैर है मेरा न रहा ।
पलकों के शामियाना से लुढ़के तो दिल में ठहर जायेंगे ,
खामियाज़ा ए इश्क़ भुगतेगा कौन जब किरायेदार मकान हड़प जायेंगे ।
तहरीर ए वक़्त पर इबारतें हैं गहरी ,
बड़ी तदबीर से उतरी हैं ।
उफ़ यूँ बहके हुए अंदाज़ से दिखलाओ न तेवर ,
इश्क़ सुरूर पर चढ़ने पाया ख़ुदा की कसम ग़रूर ए हुश्न टूट जायेगा ।
तीर तलवार भी चलाते हो क़त्ल का हुनर भी रखते हो ,
इश्क़ किया जो मोहसिन सर कलम कर छोड़ तो न दोगे।
मदमस्त आँखों के पैमानों से दो चार जाम और पिलाओ
शाकी , ख़ुदा का नाम लूँ और लब पर मेहबूब ए ख़ुदा का नाम आये ।
यूँ ही आँखों में ग़रूर लिए फिरते हैं ,
सुर्ख गाल नर्म बिखरे बाल होठों पर आब ए हयात देखा है हमने ।
बड़ी तपिश है उसके गागर के पानी में ,
कहीं ये ग़म के अश्क़ों से भरा खारा समंदर तो नहीं ।
आशिक़ का क़त्ल ए आम हुआ ज़माने ने तमाशा देखा ,
एक उसने ही बस न देखा जिसकी खातिर ये नज़ारा बरपा ।
दिल को खलता है बहुत रूठ कर तेरा दूर जाना ,
तू है दिल में महफूज़ मेरे रूठकर भी कभी मुझसे दूर मत जाना।
एक आह का फुवां ज़माने ने देखा ,
गोया आँखों से बहते समंदर को कोई रोक न पाया ।
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बड़ा ख़ामोश सा रहता है मन तेरे जाने के बाद ,
जैसे सुनसान समंदर हो लहरों की मौजों के बाद ।
ये दिल जो जला सबने आग सेंकी ,
गोया आँसुओं की जब बरसात हुयी सब भाग गए ।
जो शाम वो उधार है ,
होठों के तबस्सुम में अब भी वही नाम है ।
तेरी हर अदा पर पर्दा उढा के रखूंगा ,
जो तू मेहबूब बन मेरा तेरे नखरे सर आँखों पर सजा के रखूंगा ।
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